यद्यपि यह प्रक्रिया चलती रही और डॉ. संपूर्णानंद जी के
यद्यपि यह प्रक्रिया चलती रही और डॉ. संपूर्णानंद जी के मुख्यमंत्री बनने के बाद पं सुरति नारायण मणि त्रिपाठी एक प्रतिनिधिमंडल के साथ उनसे मिले और तमाम बाधाओं को दूर करते हुए अंततः एक विधेयक दिसंबर 1955 में असेम्बली में प्रस्तुत हुआ और प्रवर समिति से होते हुए मई 1956 में विधिक रूप से पारित हुआ।