कांग्रेस से 18 साल का साथ छोड़कर ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी का हिस्सा बन रहे हैं. यह उनका दूसरा घर होगा जहां विजयराजे के बाद वसुंधरा और यशोधरा राजे सिंधिया अपना रुतबा काफी पहले बना चुकी हैं.
- बीजेपी में रही हैं राजमाता विजयराजे सिंधिया
- 1967 में गिराई थी कांग्रेस की सरकार
- ज्योतिरादित्य की दो बुआ पहले से बीजेपी में
मध्य प्रदेश में राज्यसभा की सीट को लेकर कांग्रेस में शुरू हुआ घमासान अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच गया है. ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस से इस्तीफा देकर अपने समर्थक विधायकों संग बीजेपी के खेमें में पहुंच गए हैं. सिंधिया के इस कदम से कमलनाथ सरकार का बाहर होना लगभग तय हो गया है.
कांग्रेस से 18 साल का साथ छोड़कर ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी का हिस्सा बन रहे हैं. यह उनका दूसरा घर होगा जहां विजयराजे के बाद वसुंधरा और यशोधरा राजे सिंधिया अपना रुतबा काफी पहले बना चुकी हैं.
राजमाता का सियासी सफर
सिंधिया परिवार का राजनीतिक सफर या यूं कहें कि संसदीय राजनीति का सफर विजयराजे सिंधिया से शुरू हुआ. उन्हें ग्वालियर राजघराने की राजमाता के नाम से भी जाना जाता है. राजमाता ने 1957 में कांग्रेस के टिकट पर शिवपुरी (गुना) लोकसभा सीट से चुनाव जीता और अपनी राजनीति की शुरुआत की. हालांकि यह सिलसिला लंबे समय तक नहीं चला और बाद में उन्होंने जनसंघ का दामन थाम लिया. 1980 में जनसंघ में उनकी राजनीति की नई शुरुआत हुई और बाद में इस पार्टी की उपाध्यक्ष तक बनाई गईं.
आज जब ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में आने और उनके समर्थन से मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिरने की बात हो रही है, ऐसे में लोगों को विजयराजे सिंधिया का वह वाकया भी याद आ रहा होगा जब उन्होंने तत्कालीन कांग्रेस सरकार को गिराया था. बता दें, 1967 में विजयराजे सिंधिया ने तत्कालीन मुख्यमंत्री डी.पी. मिश्रा की सरकार को गिराया था और जनसंघ के विधायकों के समर्थन से गोविंद नारायण सिंह को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया था.
सिंधिया परिवार की राजनीति
विजयराजे के बेटे और ज्योतिरादित्य के पिता माधवराव सिंधिया की राजनीति भी जनसंघ से शुरू हुई लेकिन 1980 में वे कांग्रेस से जुड़ गए. माधवराव सिंधिया ने मध्य प्रदेश में गुना निर्वाचन क्षेत्र से जनसंघ के टिकट पर 1971 के आम चुनाव लड़ा और जीता. उनकी मां राजमाता विजयराजे सिंधिया पहले से ही संघ की सदस्य थीं. एक तरफ माधवराव सिंधिया ने कांग्रेस का दामन थामा तो दूसरी ओर उनकी दो बहनें वसुंधरा राजे और यशोधरा राजे ने अपनी मां का अनुसरण करते हुए बीजेपी की सदस्यता ग्रहण की.
इन दोनों महिला नेताओं ने बीजेपी में काफी नाम कमाया. हालांकि, वसुंधरा की राजनीति पहले केंद्र से शुरू हुई और बाद में राजस्थान तक गई जबकि यशोधरा राजे ने मध्य प्रदेश में 1998 में पहला विधानसभा चुनाव जीता. 2003 में भी उन्होंने विजय हासिल की. यशोधरा राजे मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री भी रह चुकी हैं. दूसरी तरफ वसुंधरा राजे 1998 में वाजपेयी सरकार में विदेश राज्यमंत्री बनाई गईं. बाद में उन्होंने केंद्र की राजनीति को अलविदा कह कर राजस्थान का रुख कर लिया. 2003 में बीजेपी ने उन्हें राजस्थान का चेहरा घोषित कर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. दिसंबर 2003 में उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया और दिसंबर 2008 तक वसुंधरा इस पद पर काबिज रहीं.
हालांकि पिछले चुनाव में राजस्थान में बीजेपी हार गई और वसुंधरा को अपना पद गंवाना पड़ा. वसुंधरा राजे की हार भले हुई हो लेकिन सिंधिया परिवार के ज्योतिरादित्य की राजनीति अब भी अहम है जिन्होंने मध्य प्रदेश में अपनी प्रासंगिकता पहले की तरह बिल्कुल मजबूत बनाए रखी है.
अब ज्योतिरादित्य इतिहास दोहराने जा रहे हैं. वो बीजेपी के पाले में आ गए हैं. इस पर उनकी बुआ यशोधरा राजे ने उनका स्वागत भी किया है. यशोधरा राजे ने ज्योतिरादित्य के बीजेपी में आने को घर वापसी बताया है. लेकिन ये सिर्फ घर वापसी नहीं है, बल्कि मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार के अंत का अध्याय लिखने वाला फैसला है. ये एक ऐसा फैसला है जो कभी उनकी दादी राजमाता ने लिया था.